अकेला हूँ मै
रात है, चाँद है, और है मेले जँहा के
फिर भी क्यो, मुझको यूँ...
लगता है, कि अकेला हूँ मै
दर्द है, प्यास है, साथ यादो का है
फिर भी क्यो, मुझको यूँ ...
लगता है, कि अकेला हूँ मै
दर्द कहते है किसको, ये न मालूम था
हमने समझा था जैसा, क्यो न वैसा वो था
सोचते है मगर, कुछ न आता समझ
मेरे दिल को तो इतना पता है फख्त
कि अकेला हूँ मै
रात है, चाँद है, और है मेले जँहा के
फिर भी क्यो, मुझको यूँ...
लगता है, कि अकेला हूँ मै