अकेला हूँ मै
रात है, चाँद है, और है मेले जँहा के
फिर भी क्यो, मुझको यूँ...
लगता है, कि अकेला हूँ मै
दर्द है, प्यास है, साथ यादो का है
फिर भी क्यो, मुझको यूँ ...
लगता है, कि अकेला हूँ मै
दर्द कहते है किसको, ये न मालूम था
हमने समझा था जैसा, क्यो न वैसा वो था
सोचते है मगर, कुछ न आता समझ
मेरे दिल को तो इतना पता है फख्त
कि अकेला हूँ मै
रात है, चाँद है, और है मेले जँहा के
फिर भी क्यो, मुझको यूँ...
लगता है, कि अकेला हूँ मै
3 Comments:
I like this one...I would have loved it a few years ago.
Want to ask you why do you choose to remain alone?
Aah akelapan! Tanhai jaisi.. :|
tanhai shayad akelepan se thoda alag hoti hai... but again its the way u take it, the point is insaan bheed ke beech bhi akela ho sakta hai...
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