Tuesday, December 12, 2006

ऐ हवा

ऐ हवा
मुझसे भी तो दो बाते करती जा
बैठा हूँ यहाँ ऐसे की
सिर्फ तुझसे ही बस मेरा मिलन हो

मुझ को यूँ छू कर जो गुजर रही है
एक पल को भी न ठहर रही है
ऐसे न उडा कर मेरी परछाईयाँ मुझ से
अपने संग न लेकर दूर जा

जब तीव्र गति से बहती हो
और रोम-रोम से कहती हो
बूँदो की तरह तुम भी तो कभी
पानी की सतह से उडो कभी

हो कर मन के सब गलियारो से
छू कर मन के सब कोनो को
महको और महका दो ऐसे
जिस से ये जीवन नया लगे

जब दूर कँही जाने की चाह हो
और मुझसे अलग होने की बात हो
दो पँख कँही से ढूँढ के ला दो
संग-संग तेरे उडने के
ख्वाब को मेरे सच करवा दो

0 Comments:

Post a Comment

<< Home